थारु समुदायके अटवारीः कहिया ओ कैसिक ?

 

अटवारी, थारू समुदायके महान् चाड माघ पाछेक दोसर भारी पर्वके रूपमे मानजाइठ । यी पर्वमे खास कैके पुरुषहुक्रे निराहार व्रत बैठके मनैठैं । यद्यपि, स्वेच्छा कोइ महिलाहुक्रे फेन व्रत बैठल पाजाइठ । दीर्घायू, सुस्वास्थ्य एवम् सुखमय जीवनके कामनासहित मनैना यी पर्व प्रायः भदौ महिनामे परठ । यकर तिथि मितिके बारेमे हरेक वर्षजूटे टमान मतमतान्तर हुइटि आइल बा । ठाउँ अनुसार चालचलनमे विविधता बा ओ यकर ऐतिहासिक, धार्मिक, सामाजिक पृष्ठभूमिके बारेमे फेन टमान धारणा आघे आइल डेखाइठ । यीकारण पाछके समय यी पर्वके निश्चित तिथि, मिति हुए परना बाट थारू समुदायके बौद्धिक वर्गके बहसके विषय फेन बन्टि आइल बा ।

अटवारी कहिया मनाजाइठ ?

अटवारीके परम्परागत अवस्था ओ पृष्ठभूमिहे हेर्ना हो कलेसे यी खास कैके भदौ महिनाके पहिल अँट्वारसे लेके डस्यांसम सक्कु अँट्वारके रोज अटवारी पर्वके रूपमे मन्ना चलन रहे । मने, यी चलन अब्बे नैहो । समयसँगे अब्बे यी पर्व एक अँट्वारमे किल सीमित होसेकल बा । पुरान चलनहे हेरलेसे जैसिक हिन्दू महिलाहुक्रे सावन महिनाके प्रत्येक सोमार व्रत बैठलहस थारु समुदायमे भदौ महिनाके पहिल अँट्वारसे डस्यांसमके सक्कु अँट्वारके रोज व्रत बैठ्ना चलन रहे ।

ओस्टेके कौनो साल कात्तिकमे डस्या परल कलेसे एक्के व्यक्ति १३–१५ चोसम व्रत बैठे परना अवस्था होए । अत्रा लम्मा समयसम लगातार व्रत बैठे परना हुइल ओरसे डस्यांसमके सक्कु अँट्वारके रोज अटवारी व्रत सबजे नैबैठैं । कुछ व्यक्ति भदौके पहिल अँट्वारसे लेके औंसीके पहिल अँट्वारके अटवारी धुमधामसँग मनाके व्रत स्थगित करिट कलेसे स्वेच्छिक व्रत बैठुइयन डस्यांसमके अँट्वार नियमित रूपमे अटवारी ब्रत बैठैं ।

समयक्रमसँगे भदौके पहिल अँट्वारसे ब्रत बैठ्ना अब्बे छोरल बा । भदौ महिनाम ऊ बेला ढेरजैसिनके घरमे भोकमरी हुइना ओ झाडापखाला लगायतके महामारी तथा वर्षे धानबाली भित्रैना ओ हिउँदे धानबाली रोपाइँ सुरु करना होके कामके चटारो रहल ओरसे व्रत बैठना छोरल जानकारहुक्रे बटैठैं । मने कुशे औंसी पाछेक पहिल आइतबार बर्का अटवारी ओ ओकरपाछेक ४ अँट्वार स्वेच्छिक अटवारी पर्व मन्ना चलन निरन्तर रहल । अइसिक पाँच अटवारी व्रत रहनाहुकनहे ‘पाँच अटवह्र्यन’ कहिजाइठ । पाँच अटवारीपाछे डस्या सुरु हुइठ । अब्बे बर्का अटवारी पाछेक चार अँट्वार ब्रत बैठना चलन फेन हेरासेकल बा ।

अइसिक भदौ महिनाके पहिल अँट्वारसे लेके डस्यांसम, भदौ महिनाके पहिल अँट्वारसे लेके औंसीके पहिल अँट्वारसम, कुशे औंसीके पहिल अँट्वारसे लेके डस्यांसमके ५ अँट्वार ओ कुशे औंसीके पहिल अँट्वारसे किल ब्रत बैठ्ना यी चार मेरिक ब्रतालुके साझा दिन कुशे औंसीके पहिल अँट्वारके रोज अटवारी रहल ओरसे यिहिनहे ‘बर्का अटवारी’ कहल हो । अन्य अटवारीहे भर सामान्य अटवारी अथवा छुट्की अटवारी कना चलन बा ।

यीकारण यकर मूल गहिराई नैबुझ्के बीचबीचमे तिथि–मितिमे मतमतान्तर हुइना करल बा । मने यकर परम्परागत विधि ओ प्रक्रियाहे गहिरके हेर्ना हो कलेसे विवाद करे परना खासे नैडेखाइठ । सामान्यतया अटवारी थारु समुदायके अस्टिम्की पर्व पाछेक दोसर अँट्वार अथवा कुश अमाँवस (कुशे औंशी) पाछेक पहिल अँट्वारहे बर्का अटवारी मन्ना चलन बा । बर्का अटवारी मानके ४ अँट्वारपाछे डस्या लागठ । काहे कि बर्का अटवारी पाछे थप चार अँट्वारके रोज अटवारी ब्रत बैठ्ना पुराने चलन बा । अथवा कुशे औंसी ओ डस्याके बीचमे अइना पाँच अँट्वारहे अटवारी माने सेकजाइठ । अइसिक पाँच अटवारी ब्रत बैठ्ना चलनसे फेन कुशे औंसीके पहिल अँट्वार बर्का अटवारी हो कना प्रमाणित हुइठ ।

कौनो कौनो साल पिट्टरपक्ष, मलमास या समय अनुकूल नैहोके (गाउँमे हैजा लगायतके रोगके प्रकोप ढेर डेखैना वा दैविक प्रकोपके कारण) समय हेरके अटवारी पर्व मन्ना चलन फेन बा । अइसिन करलेसे पाँच अटवारी व्रत बैठुइयन सक्कु अँट्वारके व्रत बैठे नैसेक्ना ओ अँटवारी फेन फरक–फरक मितिमे मनैना बाध्यात्मक समस्या देखापरठ । यी वर्षके अटवारीहे हेर्ना हो कलेसे औंसीके पहिल अँट्वार भदौ महिनाके ३१ गते बर्का अटवारी परल बा । ओकरपाछे असोजके ७, १४, २१ ओ २८ गते थप चार अँट्वार पाछे डस्यां आपुगि । यीकारण यी वर्षके अटवारी फेन ३१ बर्का अटवारी रहल प्रमाणित हुइठ ।

 

कुछ भ्रम

कुछ मनैन्के धारणा हिन्दू जन्यावनके हरितालिका तीज पाछेक अँट्वारहे अटवारी मन्ना फेन बा । मने यी ओत्रा सान्दर्भिक नैडेखाइठ । यदि तीजपाछेक अँट्वारहे मन्ना हो कलेसे ‘पाँच अटवारी’ व्रत बैठुइयनके अटवारी प्रभावित हुइ । औरे बाट थारू समुदायमे तीजके प्रभाव फेन एकडम पाछेसे परल डेखाइठ । थारूबस्तीमे आजके जैसिन काल्हके मिश्रित जातजातिहुकनके बसाई नैरहे । थारू समुदायके एकलौटी बसाई रहे । अपन कला, संस्कृति ओ सामाजिक मान्यताभित्रे रमैना थारू समुदाय, अन्य समुदायके पर्वहे आधार बनाके अपन पर्वके निर्धारण करना विषय फेन नैहुइ । आबक टमान जातजातिहुकनके मिश्रित बसाई ओ सबजे एकऔरेक कला, संस्कृतिहे स्विकार सेकल अवस्थामे यी बाट उठैना स्वभाविक रलेसे फेन वास्तविकता भर नैहो ।

हुइना टे कुशे औंसी पाछेक पहिल अँट्वार प्रायः तीज पाछे परठ । यी एक संयोग किल हो । यिहिनसे फेन तीज पाछेक अँट्वारहे मन्ना कना बाटके बढावा डेहे सेकठ । मने यी सत्य नैहो ओ एकडम अस्टे फेन नैरहठ । कबुकाल टे तीजके दिन अँट्वार परठ अथवा तीज आगे फेन परठ । मने, पाछेक समय यिहे तर्कके भ्रममे परके फरक फरक अँट्वारके अटवारी मन्ना समस्या देखापरल बा ।

ओस्टेके चतुर्थी ओ षष्ठी दिन पनि व्रत बैठबेर अशुभ हुइना तर्क आइल पाजाठ । यी बिषयम फे बहुत बहस होसेक्ल बा । यी बर्षके अट्वार प्रतिपदा परल ओ शनिच्चर औंसी पर्लक पहिल अट्वार अछुत मन्ना तर्क आइल बा । यी तर्क फे तर्कके लाग तर्क किल हो जसिन लागठ । काखर कलसे थारू समुदायम असिन तर्कले अर्थ निढरठ, यी बात फे बाह्य प्रभावम उठ्लक हो ।

अटवारी विशेषतः अँट्वारसँग जोरके आइल पर्व हो । यीकारण अटवारी पर्वहे यी ओ उ बहानामे विषयान्तर करनासे यकर परम्परागत पृष्ठभूमिहे अध्ययन करना जरुरी बा । जैसिक हिन्दू महिलाहुकनके सावने हर सोमारके ब्रतहे कौनो चतुर्थी, षष्ठीसे छेकबार नैलगाइठ । ओस्टेके थारु समुदायके अटवारी ब्रत फेन भदौ महिनाके पहिल अँट्वारसे डस्यांसमके अँट्वारके कौनो तिथि मितिसे असर नैकरठ ओ स्वेच्छा अनुसार तोकल समयसीमाके जौनफेन अँट्वारके ब्रत बैठे सेक्ना जानकारहुक्रे बटैठैं । मने बर्का अटवारी अथवा औंसीके पहिल अँट्वारके ब्रत अनिवार्य जस्टे रहठ ।

रूपन्देहीके साहित्कार बमबहादुर थारू ‘रूपन्देहीको थारू समाज र संस्कृति’ कना अपन पुस्तकमे कुशे औंसीके आठौं दिनपाछेक अँट्वारहे बर्का अटवारी मन्ना बाट उल्लेख करले बटैं । उहाँ ‘पाँच अटवारी’के विषयमे भर कौनो बाट उल्लेख करले नैहुइट । हुइना टे रूपन्देही, नवलपरासी, चितवन लगायतके पूर्वके कुछ जिल्लामे मनैना विधि प्रक्रिया पश्चिमा जिल्लासे फरक बा । मने, कपिलवस्तु, दाङ देउखुरी, बाँके, बर्दिया, कैलाली, सुर्खेत ओ कञ्चनपुरके थारूहुकनमे वैचारिक धारणा फरक फरक रलेसे फेन विधि प्रक्रियामे भर एकरूपता पाजाइठ ।

 

अटवारीमे केकर पूजा हुइठ ?

प्रकृति पुजक थारू समुदायमे खास कैके यी पर्व सूर्यके पूजा कैके मनाजाइठ । सूर्यहे ओज्रार, अग्नि ओ शक्ति (ऊर्जा) के प्रतीकके रूपमे मानजाइठ । रवि कलेक सूर्य (सुरज) अथवा अग्नि । जब भयावह कालरात्रि चिरके सूर्यके उदय हुइलपाछे यी संसार ओज्जार हुइल कना किम्बदन्ती बा । सूर्य अन्धार चिरके ओज्जार कराइठ । जिहिनसे मनै किल नैहोके यी पृथ्वीमे बैठना हरेक प्राणीहे सहजिल हुइठ । प्रकृतिप्रति विश्वास करना थारू समुदाय, सूर्य ओज्जारके प्रतीक करल ओरसे यकर पूजा उज्यालोदाताके रूपमे करल हो । अँट्वारहे रविबार फेन कहिजाइठ ।

यी पर्वके विषयमे कुछ अन्य मिथक फेन बा । श्रीमद्भागवत् पुराण अनुसार यी व्रत सबसे पहिले सन्तनु राजाके पुत्र राजकुमार देवदत्त अटवारी व्रत बैठलैं कना उल्लेख बा । उहाँ सूर्य उपासक रहैं । उहाँ भोजबिहा फेन नैकरलैं । राजकुमार देवदत्त चारभाइ रहैं । देवदत्त, भीष्मपितामह, पाण्डु ओ विदुर । धृतराष्ट्रह आँढर ओ पाण्डु पाण्डा रोगी (कुष्ठ रोग) रहल ओरसे उहाँहे पाण्डु कहल हो । सूर्यके पूजा करलपाछे पाण्डुके रोग ठिक हुइल । धार्मिक दृष्टि सूर्य पूजा (अग्नि पूजा) करलपाछे कुष्ठ रोग ठिक हुइठ कना प्राचीन धारणा बा ।

टबेमारे यी ब्रत पहिल राजकुमार देवदत्त बैठ्लैं । पाण्डु, कुन्ती, माद्री, कर्ण, भीम लगायत सूर्यके पूजा हेतु श्रीमदभागवत् सुनैलैं । ओकरपाछे देउताहुक्रे सूर्यके पूजा करे लग्लैं । ओस्टेके भारी–भारी ऋषिमुनिहुत्रे फेन सूर्यके उपासकके रूपमे सूर्यके जन्म डेना अँट्वारहे अटवारी ब्रत बैठ्के मनाइ लागल कना बात वीरबहादुर चौधरी अपन पुस्तक ‘वीरबहादुरके ऋतु’मे उल्लेख करले बटैं । जोन अब्बे फेन यी चाड चलन चल्तीमे बा ।

औरे मिथक महाभारत कथासँग जोरल बा । पाँच पाण्डवमध्ये सबसे बलगर भेवाँ (भीम) रहैं । जब कौरव ओ पाण्डवके लराइ हुइल । उ समय भीम रोटी पकैटि रहैं । लडाई चरमोत्कर्षमे पुगलओरसे उहाँ रोटी पकैटि पकैटि टावामे छोरके लडाईमे गैलैं । जब लराइसे अइलैं उहाँ एकडम भुँखाइल रहैं । टावामे छोरके गैल एक ओर किल पाकल रोटी खाके पेट भरलैं ।

अटवारीमे अक्केकरे रोटी –एक ओर किल पकाइल रोटी) पकैना चलन बा । अइसिक अक्केकरे रोटी उहाँ भीमहे पुजन करजाइठ कना किम्बदन्ती बा कलेसे भीम, थारू राजा दंगीशरणहे लराइमे सघाइल ओ सबसे बलगर पुरुष भीम रहल ओरसे उहाँ जस्टे बलगर हुइना संकल्पके साथ पुरुषहुक्रे उहाँक पूजा कैके अटवारी व्रत बैठ्ना विचार फेन जनमानसमे बा । अइसिक अटवारी पर्वके बारेमे अध्ययन करेबेर वैचारिक एकरूपता रहल पाजाइठ । ठाउँ अनुसार फरक फरक विचार, चालचलन ओ प्रक्रिया रहल पाजाइठ ।

 

अटवारी कैसिक मनाजाइठ ?

अटवारी, व्रत बैठ्के मनैना पर्व रहल ओरसे यम्ने फेन ‘डटकट्टन’ (दर) खैना चलन बा । दर खाइक लाग शनिच्चरके रोज दिनभर मच्छी मर्ना ओ औरे टिना, तरकारीके जोहो करजाइठ । मच्छीक सुखौरा (सुकुटी) ढेरजैसिन पहिले तयार करल रहठ । अटवारीमे मच्छीक सुखौरा विशेष मानजाइठ । मने अन्य कौनो चीजके सिकार भर नैरहठ । सागमे पोंइक साग अनिवार्य जस्टे रहठ । भिन्डी, टोरैं, ठुसा (मास जस्टे एक मेरिक दाल बाली, झिलिंगी, सिल्टुङ) लगायतके तरकारी रहठ । ‘डटकट्टन’ व्रत बैठुइयन मुर्गा कोल्नासे पहिले खाइ परठ । यदि खैनासे पहिले मुर्गा बोलि कलेसे ‘डटकट्टन’ खाइ नैपाजाइठ । खैलेसे ऊ ब्रत बैठे नैपाइठ । उहिनहे डुठा मन्ना चलन बा ।

आइतबार अथवा अटवारीके दिन व्रत बैठुइयनके खैना भान्सामे नैपाकठ । उहाँहुक्रे बिहाने लहाके बहरी (घरके प्रवेशद्वारके पहिल कोठा) या अँगनामे गैयक गोबरसे लिपपोत करठैं । लिपपोत कैके ‘कोरे आगी’ (भान्सामे पहिले प्रयोग नैहुइल आगी, चोखा आगी) मे रोटी पकाजाइठ । पुरान आगी आज अपवित्र मानजाइठ । ओहेकारण गन्यारी काठ या फोर्सा काठ घोटके निकारल चोखा आगी प्रयोग कर्ना करजाइठ । बाटुलो रोटी सूर्यके प्रतिकात्मक परिकारके रूपमे लेजाइठ । यी पर्वमे रोटी अनिवार्य रहठ । अन्य खैनाचिज भर सहायक रहठ । अटवारीमे अन्डी ओ गहुँके कैके दुई मेरिक रोटी रहठ कलेसे पक्की, अम्रुट् (अम्बा, बेलौटी), केरा, तरुल, भेली मिठाई मिलाके मोर्साके भूजा ओ मिठाइपानी फेन रहठ । पहिल दिन नोन, बेसार, मिर्चा, मच्छी, सिकार भर आजके दिन बर्जित रहठ ।

रोटी पकाके तयार हुइ कलेसे स्नान कैके बिहान लिपपोत कैके ठाउँमे पिर्का या कौनो काठके वस्तुमे संगे बैठके अपन प्रक्रिया आो बह्रैठैं । खैनासे पहिले अगयारी (अग्यारी) डेना चलन बा । निश्चित ठाउँमे गैयक गोबरसे पुनः पोटके ओम्ने आगी ढरजाइठ । ओहे आगीमे सर्री धूप (सल्लाके धूप), नौनी ओ खाइक लाग तयार करना वस्तु (अन्डीके रोटी, गहुँक रोटी, पक्की, खिरा, अम्बा (बेलौटी), केरा, तरुल, भेली मिठाई मिलाइल मोर्साके भूजा ओ मिठाइपानी) एकएकचुटि सक्कु चीज एकमे मिलाके ओमे हवन करजाइठ (चह्राजाइठ) । अइसिक आगीमे चह्राइल कामहे ‘अगयारी’ डेहल कहिजाइठ ।

सूर्य आगीके मुख्य श्रोत हो । सूर्य अपनमे अग्नि हो । टबेमारे सबसे पहिले अग्निहे अथवा सूर्यहे प्रसादके रूपमे अगयारी डेना चलन आइल हो । अगयारी डेना तीन चो दाहिन ओ तीन चो बाउओरसे पानी पर्छना (पानीके घेरो डरना) चलन बा । कोइ–कोइ पाँच या सात फेरा फेन पर्छना करठैं । ओकरपाछे अपन चेली–बेटीहुकनके लाग पहुरके रूपमे ‘अग्रासन’ छुट्याइना चलन बा ।

‘अग्रासन कलेक अपने खैनासे पहिले छुट्टयाइल खैना कना बुझजाइठ । जोन अपन खैनासे पहिले अपन चेलीहुकनके नाममे छुट्टयाजाइठ । अग्रासन ‘अग’ ओ ‘रासन’ समास होके बनल शब्द हो । यहाँ ‘अग’ कलेक सबसे पहिले कना अर्थ हो ओ ‘रासन’ कलेक खैना कना बुझाइठ । अइसिक चेली–बेटीहुकनहे डेहेक लाग छुट्टे भाँरामे निकारके किल खैना चलन बा । यी काम दिनके हुइठ । अन्य व्रत जस्टे अटवारीमे दिनभर निराहार बैठे नैपरठ । दिनके पूजा कैके खैना चलन बा । यी क्रम सूर्यास्त नैहुइटसम चलठ । सूर्यास्तपाछे खैना काम पूर्ण रूपसे बन्द रहठ ।

औरे दिन सोम्मार, ‘फर्हार’ करजाइठ । फर्हार नैहुइटसम पानी समेत नैपिके निराहार बैठे परठ । फर्हार अटवारीके अन्तिम पूजा हो । यी दिन ब्रतालुहुक्रे बिहानेसे खानपिनके तयारीमे जुटल रठैं । घरके अन्य सदस्य फेन सहयोग करल रहठ । आजके खानामे खास कैके भात, खँरिया, फुलौरी, पोंइ मिलाइल ठुसा, सुखौरा मच्छी, चिच्रा, घिरौला, लगायतके बिजोर संख्यामे तरकारी बनाइल रहठ । मच्छिक सुखौरा विशेष मानजाइठ मने सिकर भर नैरहठ । फर्हारपाछे किल सिकार नन्ना या खैना करजाइठ ।

फ्रहार, सक्कु पकवान तयार हुइलपाछे सुरु हुइठ । व्रतालुहुक्रे आघेक दिन जस्टे आज फेन लहाके धुवाई कैके अगयारी डेना अपन चेली–बेटीहुकनके लाग ‘अग्रासन’ निकार जाइठ । अग्रासन धातु वा प्लाष्टिकके भाँडामे निकारजाइठ । अग्रासन विशेषताः नम्ह्रैन (मालु), कमल या केराके पत्यामे निकार जाइठ । अटवारी अइनासे कुछ दिन पहिले पत्या टुरना काम हुइठ । प्रायः अग्रासन पट्टा खुटके बनाइल दुना टपरीमे निकारजाइठ । उ नैहुइलेसे विकल्पके रूपमे कमलके पट्टा या केराके पट्टा प्रयोग करलेसे फेन पाजाइठ । अइसिक प्रक्रियागत रूपमे सक्कु कार्य पूरा होसेकल पाछे किल ब्रतालुहुक्रे अन्न ग्रहण करठैं ।

अन्य पर्वमे जस्टे अटवारीमे अपन चेलीबेटीहुकनहे घरमे बोलैना चलन नैहो । ब्रतालुहुक्रे निकारल पहुर ‘अग्रासन’ उहाँहुकनके घरमे पुगैना जैना चलन बा । अग्रासन पुगैना प्रायः दादाभैया जैना करठैं । दादाभैया नैरहल अन्य सदस्यहुक्रे जैठैं । चेलीहुक्रे फेन अग्रासन डेहे आइलहे मानसम्मान करठैं । सम्मानार्थ जाँर, दारु ओ सिकार खवैना करठैं । अतिथि सत्कारके लाग थारु समुदायमे जाँरदारु भारी मानजाइठ । ओहेकारण जाँरदारु खुवाइ पाके सन्तुष्ट हुइल महसुस करठैं ।

यी पर्व भातृत्वप्रेम ओ सद्भावके पर्वके रूपमे फेन लेना करजाइठ । लम्मा समयसम अपन लैहर जाइ नैपाके चेलीबेटीहुक्रे यी पर्वमे अपन दादाभैया तथा परिवारसंग दुःखसुखके बाट खुलके कठैं । अइसिक एक ठाउँमे बैठके सुखदुःखके बाट ओ खानपिनसे एकापसमे विश्वास ओ आत्मीयता बह्राइठ । पारिवारिक सम्बन्ध फेन सुमधूर बनाइठ । मने यकर कुछ गलत पक्ष फेन बा । सम्मानके नाममे अत्याधिक मदिरा सेवन करना ओ करैना परम्परा समय सापेक्षित नैडेखाइठ ।

यकर कारण अनावश्यक झैझगडा, पानीमे डुबके मृत्यु, सडक दुर्घटना लगायत टमान घटना हुइल फेन डेखाइठ । यकर न्यूनीकरणमे ध्यान डेना जरुरी डेखाइठ । ओस्टेक अग्रासनके नाममे बासी खैनाचिज, खैनामे रंगके प्रयोग, अनावश्यक खर्च, कौनो साल अपन चेलीबेटी वहाँ अग्रासन पुगाइ नैसेक्के चेलीहुकनमे नकारात्मक सोचाई ढरना ओ एकापसमे मनमुटाव हुइल फेन डेखाइठ । उकारण पर्व, सबजे पर्वके मर्म अनुसार मनाइ परठ । यिहिनहे समय अनुसार परिमार्जन करटि अपन करना ओ मौलिकतामे सबजे सबहे खुशी पर्ना हिसाबमे मनाइ सेके परठ । अटवारी सबके शुभ रहे ।

छविलाल कापिला
प्रकाशित मितिः   १० आश्विन २०८०, बुधबार ०५:०४