हमहन अधिकार
नेपालके हमरे सबसे पुरान आदिवासी
राणा कालसे हमरहिन कुलके दासी
पञचायत आईल सोचली टट्का खाएक मिली
आगैल गणतन्त्र, अभिन टेकरात बाटाँ बासी
पहिले शिक्षासे बन्चित भैलीँ,
कोसिस केतनो हमरे हजार कैलीँ ।
मुल बासी नेपालके हमरे,
ढकेलत पकेलत आदिवासी कहैलीँ ।
हमहनसे कुल बनवा फडैलाँ,
हमहानेनसे कुल खेतवा बनैलाँ ।
हमने जियाईल गाई गोरु,
हमाहनेन से अपन खेतवा जोतैलाँ ।
करत करत हरवाही चरवाही,
राजा हटायना अन्दोलन करैलाँ ।
तब सोंचली कुछ मिली बखरवा,
अभिन तक अपने कुर्सीम हमनहनसे हाथ जोडैलाँ ।
संस्कृति बोली भाषाके अधिकार,
अभिन तक कापीक पन्नाम धरैलाँ ।
हमहन के हाथेम बन्धुक पकराके,
हमहने भाइ पटिदार मरैलाँ ।
अपन अधिकार हमहन,
संविधानमे लिखायक चाहिँ
बोली भाषा अपन हमहन,
किताबीयोम पढायक चाहिँ ।
शिक्षा स्वस्थ्य राजनीति मेँ,
हमनो अधिकार पायक परी
हमहन जब केहुनी उपरे,
यी बातके उठान के करी ?
झगडा लडाईसे दुरे राहोईया हमरे,
नाई सेकल जाटटीँ,उठाए हाठियार
हाथ गोड जोडजोडके शासकसे,
अभिन माङाल जाट्टीँ अपन अधिकार ।
-केवल प्रसाद थारु
प्रकाशित मितिः १४ कार्तिक २०८१, बुधबार ०६:०४
साझा बिसौनी ।