मटाँवा फेर्ना माघ

माघे संक्रान्तिह माघी फे कैजाइठ । पश्चिउ नेपालके थारू समुदायमचाँहि यी पर्वह ‘माघ’ नाउले प्रचलित बा । थारू समुदायम लौव (नयाँ) वर्षारम्भ मन्ना माघ पर्वके सांस्कृतिक, धार्मिक ओ सामाजिक महŒवके दृष्टिले बल्गर मान्जाइठ । माघक दिनमथारू समुदाय विगत वर्षके कामके समीक्षा फे कर्ठ । आगामी वर्षके योजना बनैटीयोजना कार्यान्वयनके लाग नेतृत्व देना नेता छन्ठ । समुदाय सञ्चालनके असिन सत्ताह कोहोरे बरघर, कोहोरे भलमन्सा त कोहोरे मटाँवा कैजाइठ । वास्तवमयी गाउँ चलैना परम्परागत सरकार हो ।

माघम थारु समुदायके प्रत्येक घरमूली (गरढु¥या) संयुक्त रुपम मटाँवाके घरमकचहरी (जुट्ह्याला) हुइठ । कचहरी संसद् बैठकके झल्को दिह । ‘ओह कचहरीले लौव मटाँवा, अघवा र चौकीदार चयन कर्ठ ।’ मटाँवा महासंघ दाङके अध्यक्ष चन्द्रप्रसाद चौधरी कठ्, ‘न्यायपालिका ओ कार्यपालिका असक मटाँवा गाउँक न्यायिक, सामाजिक ओ विकासके हरेक कामके नेतृत्व कर्ठ ।’

थारू समुदाय दुई साताठेसे नै पर्वके तयारीम जुटल रठ । पुसके १२÷१५ गतेठेसे नै तयारी सुरु कर्ना थारू अगुवा बेझलाल चौधरी बटोइठ । माघके पूर्वसन्ध्या अर्थात् पुसके अन्तिम दिन सन्झ्या खानपिन कैख अगुवाहुक्र मटाँवाके घरम जम्मा हुइठ ओ सबजन मिल्ख रातभर ढुम्रु गीत गैठ । दोसर दिन अर्थात् माघक १ गते बिहान्ख गाउँभरके पुरुष लग्घक खोल्ह्वा या तालतलैयाम स्नान कर जैठ । लाहाख सेक्खघर फिर्ता अइलसे घरक बह्री(बैठक कोठा)म ढकियम ढैलउरुद (मास), चाउर(चामल), न्वान(नुन) तीन÷तीन तालनिकार्खऔर टेप्रीमढर्ठ । यिहीह ‘निस्राउ कहर्ना’ कठ ।

‘निस्राउ काहार्खपाछ ठूलाबरासे आशीर्वाद लेना, शुभकामना आदान–प्रदान कैजाइठ ।’ चौधरी कठ, ‘परिवारके सक्कु सदस्य एक्क ठाउँम बैस्ख ढिक्री, सिकार, तरुल लगायत परिकार खाजाइठ ।’ ओठेसे परिवारभित्रर वर्षभर कैजिना काम छुट्यैना जिम्मेवारीके बाँडफाँड कैजाइठ । पारिवारिक योजनाके टुँगो लगाख सबजन मटाँवाक घर जम्मा होख गाउँके सामूहिक योजना बनैठ ।

कचहरीम जम्मा हुइलक भेलाले मटाँवा छान्खन एक सातासम घर घर मघौटा नाच नच्ना प्रचलन बा । ‘माघम नाच्ख उठल रुप्या पैसाले कुछ सामूहिक कार्यम लगाजाइठ । कुछ पैसाले चाहिँ सामूहिक भोज भतेर कर्टि माघह नाच्टी, गैटी बिदाइ कैजाइठ ।’ थारू कल्याणकारिणी सभा दाङके अध्यक्ष भुवन चौधरी कठ ।

हालसाल पाछक वर्षम माघ पर्वके मौलिकता चाँहि घट्टी गैलक देख्जाइठ । विगतम मन्द्रा, लहङ्गाम मघौटा नाच कर्लकम पाछक लौव पुस्ता डिजेम आकर्षित बाट । मौलिक लोक बाजागाजा ओ नाचगान ओझेलम पर्टी जाइटा । ‘मजा असल संस्कार, संस्कृति अङ्किार कैख जाइ सेक्लसे मौलिकता निघट्ने रह । यिहीह जोगाख व्यावसायिक बनाख आम्दानी फे लिह सेक्जिना देख्जाइठ । तर, असिन कर सेक्गिल निहो ।’ सभाके केन्द्रीय कोषाध्यक्ष चूर्णबहादुर चौधरी कठ । समयअनुसार लौव प्रविधिके प्रयोग स्वाभाविक हुइलसे फे अफन पहिचान ओ अस्तित्व नै यी गलत खालके डगर अँगालकनिहुइनाम जोड देल ।

यी माघ पर्वले सकारात्मक रूपान्तरण फे लन्टी बा । पैल्ह पैल्ह माघम छाइछावन केकर घरम कमैया–कम्लरी पठैना, केकर जग्गा कमैना कना छिनोफानो कैजाए । आजकाल यह दिनह छाइछावन कापीकलम देख स्कूल पठैना सुरुवात कैगिल बा ।

‘अह्मिन फे थारू समुदायकेलर्कपर्कन (बालबालिका) स्कुल नैजैना, पहर्टी पहर्टी बिचम छोर्ना जसिन समस्या बाट । आब चाहिँ सब अभिभावकहुक्र छाइछावन कसिख पह्राइ सेक्जाइ कैख व्यापक छलफल करपरठ ।’ कुनै बेला कम्लरी बैसल पूर्व सांसद शान्ता चौधरी कठी । माघ पर्वह अभिन रूपान्तरण कैख आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक ओ शैक्षिक अभियानसे जोर्ख बहस कर पर्ना उहाँक कहाइ बाटिन् ।

असिख नेतृत्व कैजाइठ

सिङ्गो थारू गाउँह नेतृत्व देना व्यक्तिह मटाँवा÷बरघर÷भलमन्सा । यी टिन्यो शब्दके अर्थ हो, गाउँके अगुवा । दाङ–बाँकेम मटाँवा कठ कलसे बर्दियाम बरघर र कैलाली–कञ्चनपुरम भलमन्सा ।

२०७८ के जनगणना अनुसार, थारू समुदायके जनसंख्या १८ लाख सात हजार एक सय २४ अर्थात् ६.२ प्रतिशत बा । आदिवासी जनजातिम पर्ना यी समुदायके बसोबास पुरुबठेसे पश्चिउसम फैलल बा । खास कैख झापा, मोरङ, सुनसरी, सप्तरी, उदयपुर, सिरहा, धनुषा, महोत्तरी, सर्लाही, रौतहट, बारा, पर्सा, चितवन, नवलपरासी, रुपन्देही, कपिलवस्तु, दाङ, बाँके, बर्दिया, कैलाली, सुर्खेत, कञ्चनपुरम सघन बसोबास बा । यद्यपि, मटाँवा÷बरघर÷भलमन्सा प्रथा दाङ, बाँके, बर्दिया, कैलाली, कञ्चनपुर ओ सुर्खेतम किल रलक बाट अगुवाहुक्र बटोइठ ।

बरघर÷भलमन्सा÷मटाँवा महासंघका केन्द्रीय अध्यक्ष एवम् लुम्बिनी प्रदेश सरकारके मुख्य मन्त्री डिल्लीबहादुर चौधरीके अनुसार, मटाँवा हुइलक ओनिहुइलक गाउँम धेर अन्तर देख्जाइठ । मटाँवा हुइलक गाउँ विकासठेसे हरेक काममअघारीरठकलसे मटाँवा निरलक गाउँ अस्तव्यस्त पाजाइठ ।

भेलाम गाउँक विकासके कार्यठेसे पूजापाठ कसिक कर्र्ना, कुन ठाउँम का बनैना, काहाँसम डगर(बाटो) बनैना, काहाँ मर्मत कर्ना, आर्थिक स्रोत काहाँसे जुटैना आदि विषयम व्यापक छलफल हुइठ ।असहख एक बरसके लाग गाउँ चलैना नेतृत्व किहीह देना कना टुँगो लगाजाइठ । सकेसम सर्वसम्मतिम यदि निहुइल कलसे लोकतान्त्रिक अभ्यासमसे निर्वाचन कैख लौव मटाँवा चयन कैजाइठ ।

महासंघ अध्यक्ष चौधरीके अनुसार, मटाँवाह सहयोग कर्ना अन्य दुई व्यक्ति ‘अघवा’ ओ ‘चौकिड¥वा’ फे छन्ठ । मटाँवाके नेतृत्वम कचहरी बैस्नासे आघ प्रत्येक घरमूली अर्थात् ‘गरढु¥या’ ह खबर कर्ना, गाउँम लौव योजना आइल कसले गाउँक मनैन जानकारी देना काम अघवाके रहठ । ओसहख डगर, कुल्या बनाइ परल कलसे बन्ध्वा बाँध परल कलसे गरढु¥यन काम लगैना जिम्मा फेहुकहनक रठिन् । चौकीदार चाहिँ गाउँठेसे अनाजबालीसम रेखदेख करपरठ ।

पत्रकार केबी मसाल मटाँवा प्रथा आधुनिकताके कारण तहसनहस हुइटीरलक ओहर्सेयिहीह पुनःस्थापना करपर्ना आवश्यकता रलक बटोइठ । उहाँक अनुसार, पर्वत्वाम मगर, गुरुङ, लिम्बू, शेर्पा समुदायके समाज सञ्चालनके आफन आफन रीतिथिति रहसक तराईम थारू समुदायके आफन चलन बैस्लक हो । ‘मटाँवा कुशल राजनीतिक अभ्यास हो,’ उहाँ कठ, ‘तर आजकाल राजनीतिके कारण यी प्रथा ओझेलम परल बा ।’

पैल्ह पैल्ह मटाँवा पह्रललिखल निरहठ । तर, डगर कसिक बनैना, कुल्वा काहाँसे लन्ना, बस्ती कसिक व्यवस्थित बनैना कना विषयम हुकनक ‘डिजाइन’ म ह्वाए । ‘असिन वैज्ञानिक प्रथा जोगैना काम यी परम्परागत ज्ञान र सीप पुस्तौंपुस्ताह काम लागठ ।’ मसाल कठ ।

 

कानुनी मान्यता

लुम्बिनी प्रदेशके बर्दिया ओ सुदूरपश्चिमके कुछ स्थानीय तहम मटाँवा (बडघर÷भल्मन्सा) प्रथाह कानुनी मान्यता देल बाट । कैलालीके कैलारी गाउँपालिका ऐनमै व्यवस्था कैख ‘थारू समुदायके प्रथाजनित संगठनको क्षेत्राधिकार सम्बन्धित गाउँमा रहना’ गरी बडघरके कार्यक्षेत्र तोकदेल बा । परम्परागत प्रथाके अभिलेखीकरण ओ संरक्षणमा टेवा पुगैना उद्देश्यले कानुनी मान्यता देलक गाउँपालिकाके अध्यक्ष रामसमझ चौधरी कठ ।

मटाँवा प्रथाह सबैसे पैल्ह मान्यता देलक बर्दियाके बारबर्दिया नगरपालिका हो । ऊ पालिका गत वर्षठेसे मटाँवा, बडघर र भल्मन्सा हुकहन सामाजिक तथा विकास निर्माणके कामम अग्रसर करैलक पूर्व मेयर दुर्गाबहादुर थारू (कविर) बटोइठ । बारबर्दिया ‘बरघर प्रणाली संरक्षण, प्रवद्र्धन र विकास करक लाग बन्लक ऐन, २०७७’ नगरसभामसे पारित कैसेक्ल बा ।

ऐनम गाउँके विकास निर्माण, शान्ति सुव्यवस्था आदि कायम करक लाग बडघर प्रणालीहअह्मिन् सशक्त बनाइ पर्ना ओ स्थानीय विकासम न्यायोचित सहभागिता ओ पहुँच सुनिश्चित करपर्ना उल्लेख वा । ओसहख, सामाजिक न्याय, मेलमिलाप, सद्भाव ओ दिगो विकासके लाग चिरकालठेसे अभ्यासम रहल प्रणालीह कानुनी मान्यता देख अह्मिन् प्रभावकारी बनाइपर्नाम जोड देल बाट ।

थारू अगुवा एकराज चौधरीके अनुसार, आजसम थारूबहुल क्षेत्रके १० स्थानीय तहम मटावा प्रथाह कानूनी मान्यता देलसेक्ल बाट । मान्यता देलक बर्दियाके बाँसगढी, ठाकुरबाबा र मधुवन नगरपालिका बाट । बर्दियाके राजापुर नगरपालिका ओ बढैया गाउँपालिका चाहिँ यकर लागि आवश्यक ऐन निर्माणमजुटल बा । ओसहख, दाङके तुलसीपुर नगरपालिका, कैलालीके टीकापुर नगरपालिका ओ जोशीपुर गाउँपालिका, कञ्चनपुरके कृष्णपुर, शुक्लाफाँटा ओ बेलौरी नगरपालिका फे कानूनी मान्यता देसेक्ल बाट । कैलालीके जानकी गाउँपालिका ओ कञ्चनपुरके लालझाडी गाउँपालिका ऐन निर्माणके चरणम बाट ।

सन्तोष दहित
प्रकाशित मितिः   ११ पुष २०८०, बुधबार ११:००