अष्टिम्की पर्व ओ यकर सांस्कृतिक चित्रकलाके महत्व

१. गोरी डराइः

चाडपर्वले मनैन चौकस ओ चम्पन्न बनाइठ । हरेक जाति समुदायके आफन मौलिक तौरतरिकासे मनैना विभिन्न चाडपर्व संस्कार संस्कृति रहठ । थारु जाति फे अलग पहिचान देना खालके आफन भाषा संस्कृति एवम् सामाजिक रीतिरिवाज रहल समुदाय हो । थारु जाति फे और जातिअसक अनेकौ चाडपर्व मनैटी आइल बाट । विभिन्न चाडपर्वमध्ये १.माघ २.बर्का डश्या ३. फगुई ४.होरी ५.डेवारी ६.बर्का अट्वारी ७. अष्टिम्की ८. गुरही ९. बर्का पूजा १०. हरेरी ११.धुरेरी १२.हरढावा असक धेर चाडपर्व सामूहिक रूपम मनैटी आइल बाट । थारु समुदायम थारु महिला हुक्र मनाजिना अष्टिम्की पर्व एक महत्वपूर्ण पर्व मानजाइठ ।

२. अष्टिम्कीके तयारीः

जब यी पर्वके आगमन हुइ लागठ तब गाउँघरके वातावरण नै चम्पन बन लागठ । हरेक घरक अभिभावक हुक्र आफन छाइ, पटुइहेन, चेलीबेटिनके लाग लौव लुगा किन्ना सरजामा जोर्ना तयारी कर लग्ठ । ब्रत बैस्लक दिन लौव लुगा लगाख पूजापाठ ओ टिक्ना हुइलक कारण लौव लुगा अनिवार्य रहठ । ऊ दिन लौव लुगा निरलसे चेलीबेटी छाइ लर्का महा कर्रसे पिर मन्ना कर्ठ । असहख अष्टिम्की चित्र बनैना महाटावाके घरक मनै फे आफन घर निप्ना कर्ठ । खास चित्र बनैना ठाउँ (भित्ता) उजर माटीले निप्ना कैजाइठ । ओसहख मिठ मिठ तरकारी, मच्छी, फलफुल, क्यारा पकैना, दही जमैना, खिरा, अम्रुट, आदि सामग्रीके क्रमम जुटैना सुरु कैजाइठ । असिन फलफूल खास कैख ओह अष्टिम्किक लाग बचाख धर्ना फे कर्ठ ।

३. अष्टिम्की चिनारी:

अष्टिम्की पर्व खास कैख थारु महिला हुक्र मनैना पर्व हो । तर आजकाल कुछ युवा हुक्र फे ब्रत बैस्ना सुरु करल पाजाइठ । यी पर्व हरेक वरसके भदौ महिनाके कृष्णाजन्माष्टमीके दिन मनाजाइठ । ऊ दिन गाउँक महाटावा वा बरघरेक घरक भित्ता वा डेहेरीम कृष्ण चरित्र सम्वन्धी विभिन्न वृतान्तह चित्र बनाख ओह चित्रके पूजापाठ कर्ना कर्ठ । यी पर्व विशेष कैख कपिलवस्तु रूपन्देही पश्चिउ दाङ, बाँके, बर्दिया, कैलाली, कञ्चनपुर, सुर्खेतम धुमधामाके साथ मनाजाइठ । सप्तमीके रात बिना मुर्घी बोल्ल मिठ मिठ तरकारी, परिकार, मच्छी, आदि रिझापकाख दर खैना चलन बा । जिहीह थारु भाषाम डट्कन खैना फे कठ । ओठेसे अष्टिम्कीक दिनभर ब्रतालु थारु महिला दिदीबाबु, बठिनेन निराहार ब्रत रठ । ऊ बरघरेक घरम चहलपहल रौनकले भरल रहठ । प्राय ब्रत बैसल युवा युवती हुक्र अष्टिम्की टिक्ना घरओहर जमघट रठ । कुछ युवा हुक्र फे निराहार रठ ओ अष्टिम्कीक चित्र फे बनैना काम कर्ठ । चित्र बनैना ठाउँम ब्रत निरहल मनै ओठे जैना वर्जित रहठ ।

सन्झ्याख ब्रत बैसल महिला दिदी बाबुहुक्र लग्घक खोल्ह्वा वा कुवाम लहाख सिँगारपटार गरगहना घाल्ख सपर्ठ । घरक कुल दिउता रहल पाताम दिया बर्ठ ओ बरघरेक घर टिक जाइक लाग पूजा सामग्री टथ्याम चाउर, घुन्यासरके फूला, बर्टिरहल दिया, एकजोर कागती वा निम्वा, लाल सिन्दुर, धुप, भ्वाजविहा करल महिला दिदीबाबु हुक्र चाहिँ धानक बुट्टा, मकै बुट्टा फे साथम लेक जिठ असिक विविध सर सामग्रीसहित घरघरसे जगमग जगमग हाठम पुज्ना सामग्रीसहित निक्रठ त गाउँ नै ज्योर्तिमय बनठ । अन्य गाउँघर जन्नी, थारु, युवा ठ¥या, लर्कापर्का फे सँगसँग अष्टिम्की रलक बरघेरक घर जम्मा हुइठ । पूजा कर्ना बहरीम निपल ठाउँम गोन्द्री बिछाइल रहठ । बरघरेक घर गोसिन्या लगायत गाउँक सबजन टथ्याम लैगिल चाउर फुला लस्कर अष्टिम्कीक टिक्ना बनाइल ठाउँम धर्ठ ओ पालिक पाल्या कान्हा लगायत अष्टिम्कीम बनाइल सब चित्रम क्रमशः टिक्ख पुजापाठ कर्ठ ।

पूजापाठ कैख सेक्लसे जम्मा हुइल युवा ठर्‍या लौरा लर्का महिला दिदीबाबुनके लानल कागती र निम्वाके भेठी काट्ख धर्ना बाँकि कागती निम्वा लैजैना कर्ठ । भेठी (चोटि) काटब्याला प्राय युवा ठ¥या हुक्र आफन मन परल बठिनेनके पूजा करल प्रसादके भागम रहल कागती वा निम्वाके भेठी कट्ना कर्ठ । ओहमार ठनिक सुघ्घर बठिनेनके भागमसे कागती या निम्वा ज्या बा ऊ अच्निकअछ्ना, तछाडमछाड कर्ठ । ऊ दृश्य रमाइलो ओ हेर्ना लायक रहठ । ऊ ब्याला ओठे ठरेन आफन आफन छुट्ट चोटि कट्ना हस्या लैगिल रठ । वाकर पाछ ब्रतालु महिला लौ¥या लर्का आफन आफन घर फिर्ता होख घरम फे एकठो क्वाठ वा बहरीम निप्ख आँगिम विभिन्न फलफूल चिकुट्ख चह्राख धुपाख पूजापाठ कर्ठ । आँगीक अग्यारीम पानीले पछर्ठ । पूजापाठ कैख आफन दादु भैयनके लाग खिरा, अम्रुट, स्याउ, फलफुल छुट्ट टेपरीम काहार्ख ढर्ठ ओ फलफूल भोजन कैख पुन महाटाँवाको घर जम्मा हुइठ । महाटावा वा बरघरेक घर रातभर कान्हक गीत गैठ । छोक्रा नाच फे कर्ठ । अष्टिम्की गीत गैनासे पैल्ह चार दिशाका दिउता एवम् देवी दुर्गाह स्मरण कैख मात्र गीतको सुरुवात कर्ना चलन बा ।

सम्ह्रौटी:

पूरुब मै सुमीरौ सुरज गोसाइँ
पछिउँ मै सुमिरौ रमझम (निरञ्जन) देवी खरतारे ।।१।।
उत्तरे मै सुमिरौ हरि कविलासे
दक्षिण सुमिरौ शिव जगन्नाथ ।।२।।
आकाश सुमिरौ इन्द्र ओ चन्द्र
पाताल सुमिरौ बासुकी नाग ।।३।।
पहिल मै सुमिरौ गउँकी भुइह्यार
हमारी मेररिया दिउँता करही रक्षा पाल ।।४।।
दिहबु मै सुमिरौ देउ देवारिन
हमरी मेररिया करो रे रक्षा पाल ।।५।।
मेररिया मझिमारे सुमिरौ मै टुही
कण्ठ बैठो मोर गीत देहूँन सिखाइ ।।६।।

पूर्वम सूर्य देवता, पश्चिमम रमझम निरञ्जन देवी, उत्तरम पाटन देवी (हरि कविला),दक्षिणम शिब जगन्नाथ, आकाशओहर चन्द्र ओ इन्द्र पातालम बासुकी नाग दिउता र गाउँक साझा ठन्वा भुइहयार(मन्दिर) आदिको स्मरण कैख किल यी पर्वक कृष्ण लीलम आधरित गीत गाजाइठ । जिहीह अष्टिम्कीक गीत कठ । अष्टिम्कीक दिन जत्रा गीत गैल रठ पाछ सख्या नाच करब्याला ओह अख्राठेसे गीत गैना चलन बा । अष्टिम्कीक गीत नै सख्या गीत हो । अष्टिम्कीक दिन गैना ढरान (लय) म केल फरक रहठ । अष्टिम्कीक दिन गाइ ब्याला स्वाझ ढरानम गाजाइठ कलसे सख्यामा सखीर कना ठेगो ठप्जाइठ । बाँकी सब गीतके पैढार एक्कमेरिक रहठ ।

अष्टिम्की गीतको केही अंशः

पहिल त सिरीजित गैल जलथल धरती
सिरीजित त गैल कैल कुश रे दाप ।।१।।
दुसर त सिरजल अन्न कही पात
सिरीजित गैल अन्न कही विरोग ।।३।।
तिसर त सिरजल अन्न कही डार
सिरिजित गैल अन्न कही फल ।।४।।
चौठा सिरिजित गैल अन्न कही फूल
सबहु देउता हो मिली लेउ फुल वास ।।५।।
सिरिजित गैल कारी मनखवा
कारी मनखवा कल मै बरी बाटुँ ।।६।।
कारी मनखवा कहल मै बरी बाटुँ
दिउता जे कहल मै बरी बाटु ।।७।।
कारी मनखवा कहल मै बरी बाटुँ
सिरिजित गैल बिरछिक रुखवा ।।८।।
बिरछि चरहल बारु कन्हैया
बिरछि चरहल बारु कन्हैया किचिर किचिर बोल ।।९।।

यी संसारम सबसे पैल्ह जल ओ थलके उत्पत्ति हुइलक हो । वाकर पाछ क्रमश कुश, फल, अन्न, मानव, रुख, विरुवा आदिके उत्पत्ति हुइलक हो कना बाता गीतम रहल बा । राट्ख महाटावाके घरम जग्राम कैख बिहान्ख सबजन आघक दिन अष्टिम्की टिकलक महाटावक घर पुनः पूजापाठ कैख ओेठेसे फूला, निम्वा वा कागतीके चोटि, आछत, टथ्याम उठाख दियासहित लग्घक खोल्ह्वा अस्राए जैठ । ब्रतालु महिला दिदीबाबु हुक्र विशेष सजधजके साथ सजल बठिनेन्के लस्कर खुब सुहावन ओ मनमोहक दृश्य देख्जाइठ । पूजापाठ करल फूलालगायतके सामग्री खोल्ह्वाम अस्राख ब्रतालु महिलाहुक्र लहाख घर फिर्ता हुइठ । यहर घरम एक ठाउँम लिपपोट कैख फलाहारके लाग पवैके साग, उरुदके गुडा, मच्छी आदि परिकारसहितके खाना तयार बनाजाइठ । ब्रतालु दिदीबाबु खोल्ह्वासे लहाख आख छुट्ट निपल ठाउँम अग्यारी सब टिनाटावन चह्राख , धुप ओ पानीले परस्ख । निंधल टिनाटावन ओ भात छुट्ट टेपरीम छुट्यैठ जिहीह अग्रसान कैजाइठ । असिख छुट्याइल अग्रसान आफन दादु भैयन दिह जिना चलन बा । अग्रासन काहार्ख ब्रतालु दिदी बहिन्यो खाना खैठ । ऊ दिन घरपरिवार सबजन ओह ब्रतालुनके लाग पकाइल खाना खैना कर्ठ ।

४. कुन कुन भगवान एवम् प्रकृतिके पूजा कैजाइट त ?

थारु प्रकृतिपूज जाति हुइट । थारु समुदायम आफनठे ज्या बा ओह चाचक उपयोग कर्ना कर्ठ । जीवनयापनके क्रममा ज्या ज्या प्रयोग ओ उपयोग हुइट ऊ सब सम्मान कैगिल चित्रके पूजा हो अष्टिम्की ।

उप्रक चित्रम बनाइल विभिन्न चित्रके सूचीः

१. कृष्ण(कान्हा) २. (सूर्य)दिन ३. चन्द्र(जोन्ह्या) ४. पाँच पाण्डव (पाण्डो) ५. कौरव (कौराओ) ६. डोली ७. बनुवा ८. मञ्जोर ९. ऊँट १०. हात्ती ११. नाउ (लाउ) ११. बाँसुरी बजाएको कृगण(कान्हा) १२. कुकुर (कुक्रा) १३. रावण (रौना) १४. सर्प (सप्वा) १५. राम र सीताको अभिभावक १५. घोडा (घो¥वा) १६. भाले (मुर्घा) १७. माछा (रैनी मछरिया) १८. रुख १९. बाँदर २०. बाघ (बग्घ्वा) २१. पुरैन पाता (कमल फूलके प्रतिक) यसरी विभिन्न प्रकृतिह पूजापाठ कैजिना यी पर्व बारे विभिन्न मिथक रहल बा । अष्टिम्की चित्र खास कैख मूल खाकाके ३ ठो बोर्डरमा चित्र अङ्िकत बनाजाइठ ।

१. कृष्ण (कान्हा): कान्हाके चित्र सबसे उप्रक भागम रहठ ओ चित्रके सबसे तरक रुख्वाम फे बस्या (बाँसुरी) सहित चित्रित रहठ । यी पर्वके मूल नायक नै कृष्ण हुइट । कृष्णले सबै जिवजन्तु पशु प्राणीह आफन बाँसुरीले मोहित बनैना कला हुइलक कारण रुख्वक टुप्पाम बैस्ख बजाइल चित्र रहल बा । यी पर्वम कान्हाके विशेष पूजापाठ कैजाइठ ।

२. दिन (सूर्य): थारू जाति प्रकृतिके पूजक हुइट । यी चित्र बनाइल भित्ताके बाउँ पाजर अङ्कित रहठ ।

३. चन्द्र (जोन्ह्या): यी पर्वम जोन्ह्याके फे पूजा कैजाइठ । जोन्ह्याके चित्र बाउँ पाँजर बनाजाइठ ।

४. पाँच पाण्डव (पाण्डो): थारू समुदायम पाँच पाण्डव विशेष पूज्य दिउताके रूपम मानजिठ । पाँच पण्डाओ हरेक गाउँक सझ्या ठन्वाम फे विशेष स्थान रठिन् । पाँच पण्डाओनके चित्र पहिल पंक्तिम बनाख टिकजाइठ । हिकनक हाठ हाठम छाता रठिन्

५. कौरव (कौराओ): यी पर्वके दोसुर लाइनम कौराओनके चित्र रहठ । पाँच पण्डाओनके तर कौरवके चित्र बनाजाइठ । हिकनक हाठम बन्ढुक या तरवाल बनाइल चित्र फे पाजिठा । यकर अर्थ कौराओ ठनिक उग्र रलह कना किंबदन्ती पाजाइठ । कौनोे कौनो ठाउँम चाहिँ सादा मनैनके किल चित्र बनाइल पाजिठा । कुइ कुइ यी दोसुर लहरम रलक पाँचठो चित्रके बारेम फरक फरक धारणा दिहल पाजाइठ । जस्त कि दुसर लहरम महिलाके चित्र फे पाजाइठ । थारू संस्कृतिविद अशोक थारूके अनुसार यी पाँच पण्ठाओनके सझ्या जन्नी दु्रपुतिके हो कठ । पाँच पण्डाओन जन्नी फरक फरक फे रलहिन हुकनक प्रतीक हुइसेकठ कना तर्क कर्ठ । डा. कृष्णराज सर्वहारीके अनुसार यी चाहिँ राधाके प्रतीक ओ सोर हजार आठ गोपिनीके प्रतिकके रूपम बनागिल हो कठ । असिख यकर बारे अहमिन अनुसन्धान कर पर्ना जरुरी देख्जाइठ ।

६. रौना (रावण): अचम्मके बात त अष्टिम्की पर्वम बारठो मुन्टा रलक रौनाके चित्र फे बनाजाइठ । यी चित्रम नैटिक्जाइठ । छोट छोट लर्का केल टिक्ठ । खाटिमुरी नाआइस्, बिमार नाहुइस् कैक पुकारा कर्ठ । यी चित्रके बारेम डा. कृष्णराज सर्वहारी अति जुगम दानव ओ दिउताके किल कथा पाजाइठ । ऊ ब्याला रावण (रौना) फे शक्तिशाली रलह । थारू चाहिँ दानवके सन्तान हुइट कना मिथक बा । जस्त कि सखिया गीतम डानु रि डाडा दरिउना दरिउना भलि र ! कैख दानवह फे सम्झल पाजिठा । यी चित्रके बारेम थारू विद्वान महेश थारू फरक मत बाटिन् । उहाँक अनुसार यी चित्र रावणके नाहोक सृष्टिकर्ता ब्रम्हाके हो । कालान्तरम बारठो मुन्टा बनाइल देख्ख बरमु¥वा कहलग्ल कना तर्क पेश कर्लबाट ।

७. अस्टख अष्टिम्कीको चित्रमा प्राचीन समयम समयको सूचक मानजिना मुर्घा, घरक रक्षक कुक्रा, जङ्गलसँग निकट रहना कजरिक बन्वा (वन), हात्ती, बाघ, बाँदर, मन्जोरके विभिन्न प्रकृतिहरूके पूजा यी पर्वम कैजाइठ  ।

८. माछाः खास कैख मच्छी थारु समुदायम विशेश मान्जाइठ । मच्छीह रैनी मछरियाके नाउले पुज्जाइठ । पहिले यो पृथ्वी उत्पत्ति हुइ ब्याला जल नै जल रह । यी धरतीके सृष्टिसँगसँग सबसे पैल्ह मच्छिक अवतार हुइलक हो कना बात हिन्दु धर्म ग्रन्थमा पाजाइठ । ओहमार थारु आफन हेरक शुभ कार्य पूजापाठ लगायत मर्निकर्नीमा समेत मच्छिक प्रसाद स्वरूप टिनाटावनम अनिवार्य मान्जाइठ । ओसहख कान्हा (कृष्ण) के बाबा इसरु (बासुदेव) खेतीपातिक लाग बन्वाम हरजुवा आदि वाह्र (काट) जाइब्याला लड्या टर्क ब्याला मच्छीम चिहुर्ख टरकठ कना अष्टिम्कीक गीतम किंवदन्ती बा । अष्टिम्की पर्वके फलाहार कर्लक दिन मच्छी टिना अनिवार्य रहठ ।

९. असहख डोली, राम भगवानके बाबा दशरथ र सीताके बाबा जनकके सम्धी सम्धीके चित्र, मन्ज¥वा, लाउ, ढेंकी, हर ज्वाटल चित्र आदि विभिन्न चित्रम पूजापाठ कर्ना यी पर्वके विशेषता हो ।

४. अष्टिम्की पर्वको महत्वः

हरेक चाडपर्वके आफन महत्व ब्वाकल रहठ । अष्टिम्की पर्वके फे विशेष महत्व रहल बाः

  • थारू समुदायके सब महिला दिदीबहिन्या हुक्र सामूहिक ब्रत बैठ्ना हुइलक कारण समाजम एकता कायम कर्ना काम करठ ।
  • दादुभैया ओ दिदीबहिनेन्के बिच प्रगाढ सम्बन्ध बनाइठ ।
  • प्राकृतिक रूपम विभिन्न जिवजन्तुनके पूजापाठ कर्ना यी पर्वाम प्रकृतिसँच निकट सम्बन्ध रहल बुझाइट ।
  • अष्टिम्कीके गीतम यी ब्रम्हाण्डके सृष्टि हुइल ओठेसे सबसे पैल्ह का का चिचके सिर्जना हुइल कना आख्यानले ऊ सिर्जित प्रकृतिके पूजा हुइना हुइलक ओहर्से थारू प्रकृति पूजक जातिके रूपम चिनारी देहठ ।
  • गाउँभरिक महिला, बठिन्या, छोट छोट लर्का लौव लौव लुगाम सजधजके साथ प्रत्उेकके हाठ हाठम दिया सहितके टथ्या सन्झेक दृष्य ज्योर्तिमय बनल रहठ । असिन चहलपहलले गाउँम थप रौनकताले चम्पन बन पुगठ ।
  • ब्रत बैस्ख आफन मनोकाङ्क्षा पूरा हुइना जनविश्वास रहल हुइलक कारण भक्तिपूर्वक मनाजिना यी चाडले प्रकृति ओ भगवानप्रति आस्था जगैल बा ।

५. निष्कर्षः

चडपर्वके आफन मूल्य मान्यता रहठ । थारू समुदायम विधिवत रूपम महिला दिदी बहिनेन केल निराहार ब्रत बैस्ख मनैना यी पर्व काल्हिक दिनम जुन तौरतरिकाले मनाजाए आजकाल सामान्य औपचारिक रूपम सिमित हुइटी गिलक पाजाइठ । गाउँभरिक महिला एक्क ठाउँम जम्मा होखन मनाजिना यी पर्वम आजकाल अक्कहले आफन क्वाठम कृष्णके फोटु बजारसे लान्खन पूजापाठ कर्ना प्रवृत्ति बह्रलक कारण सामामाजिकताम कमि महशुस कर सेक्जाइठ । कोइ धनीमानी व्यक्तिहुक्र तडकभडकले समाजम असर पुगाइल देख्जाइठ । ओहमार परप्परागत मौलिकपनह संरक्षण कर्टि आत्मसात कर पर्ना जरुरी बा ।

सन्दर्भ सूचीः

  • कोपिला छविलाल हमार संस्कृति (२०७१) आदिवासी जनजाति राष्ट्रिय प्रतिष्ठान जावलाखेल काठमाडौं
  • चौधरी पन्ना मानबहादुर थारु सख्या नाच गीत (२०७०) युनिक नेपाल बर्दिया
  • डा. दहित गोपाल थारू संस्कृतिको परिचय (२०७७) युनिक नेपाल बर्दिया ।
  • डा. सर्वहारी कृष्णराज बिहान (२०५८) थारू युवा विद्यार्थी परिवार,काठमाडौं ।
  • शत्रुघन चौधरी अष्टिम्की गीत (२०७४) आदिवासी जनजाति राष्ट्रिय प्रतिष्ठान जावलाखेल काठमाडौं ।

पृष्ठ संयोजकः मानबहादुर चौधरी, पत्राचारके लाग ठेगानाः इमेल: [email protected][email protected] र मो.न.: ९८४८०४०८८०

प्रकाशित मितिः   ८ भाद्र २०७९, बुधबार ०५:०४