गजल

राम कुमार थारु ‘ऋदम्’

बालापनके जिन्गीफे बेकारमे गुजरगील,
कुछ मस्ती तो कुछ अहंकारमे गुजरगील

यी जिन्गी एक कठपुतली न हो समयके,
कबु चाकडी तो कबु सत्कारमे गुजरगील

जिन्गी के हर सपना पुरा कर्ना रहर रहे,
लेकिन उ सपनाफे अन्धकारमे गुजरगील

मै भगवानसे फे हर दुंवा मङ्नु जिन्गीके,
यी जिन्गीके हर दुंवा इन्कारमे गुजरगील

कोई दिन रहे जब जवानी फे मष्ट रहे,
मष्ट जवानीफे सब उधारमे गुजरगील

अजिव लागठ यी बेवकुफ जिन्गी देख्क,
पुरा जिन्गी साला ढिक्कारमे गुजरगील ।

प्रकाशित मितिः   २० भाद्र २०८०, बुधबार ०५:०२