गजल

सन्तोष चौधरी (वीरेन्द्रनगर –१० कोनैठी)


काबा खै टुहार रूपम हेर्ती रनास मन लागठ
काबा खै टुहार बोलीम सुन्ती रनास मन लागठ ।

टुहार यादम मोर आँखी रातभर जागठ
टुहार यादम सद्दभर भुल्टी रनास मन लागठ ।

आँखी टुम्ठु त फे टुहार रूप आँजर पाँजर देख्ठु
टुहार मयालु क्वारम झुल्टी रनास लागठ ।

कौनो दिन निदेख्ठु त अँध्यरा रात होकि कठु
हर रात टुहार सँग बैस्टी रनास मन लागठ ।

प्रकाशित मितिः   १८ जेष्ठ २०७९, बुधबार ०५:१०