अधुरा सपना
फाटल भेगुवाके भरमे
मै अपन जिन्दगी गुजार सेक्नु छावा ।
सिर्फ दुई छाक खानाके लाग
यी जिन्दगी मै वन्दगीमे उधार सेक्नु छावा ।
रातदिन मरमरके काम कर्नु
आखिर केकर लाग ?
थोपाथोपा पसिना चुहैनु
सिर्फ जिम्दरुक लाग ?
हे भग्वान,
यी जिन्दगी का जिन्दगी देलो टुं ।
आज मोर सन्तानके
जिन्दगीफे बरबाद करदेलो टुं ।
सायद,
एक लाचार, विवश ओ
गरिबके जिन्दगीसे नादान बाटो टुं ।
ओकर हरेक दुःख, पिडा, दर्द, मजबुरी या बाध्यता
या ओकर देखल अधुरा सपनासे फे अनजान बाटो टुं ।
तुहिन दोष लगैना मोर कोई रहर नाई हो
सायद,
यी मोर फुटल करम् अस्त हो की ?
या मै जैसिन गरिबके घरमे पैदा हुइन
छावा तोर जनम् अस्त हो की ?
यदि हो कलेसे
यी कैसिन नियती हो या विडम्बना ?
जहाँ बाबाके बरबादीसँगे छावाके बरबादीफे हुही पर्ना ?
का बाबा बलिके बक्रा बनल कति किल
छावाफे बलिके बक्रा बनही पर्ना ?
का गरिब, किसान, मजदुर, कमैयनके
कोइ अस्तित्व नाई हो ?
का यी देशमा कमजोर पिछाडा वर्गके
कोइ स्वामित्व नाई हो ?
एक गरिब किसानफे
स्वाभिमानके साथ जिय चाहाटा यहाँ ।
अपन अस्तित्वके लाग
स्वतन्त्रताके साँस लेहे चाहाटा यहाँ ।
लेकिन का फाईदा
जहाँ एकके ठाउँमा हजार शासक जन्म लै सेक्ल ।
शासनके नाउमे गाउँगाउँमे सिंहदरबार बना सेक्ल ।
जहाँ आज फे कमजोर वर्गके कोई सुनुवाई नाई हो ।
एक गरिबके लाग आजफे यहाँ कोई दुंवाई नाई हो ।
आखिर कबतक ?
यी कदापी स्वीकार्य नाई हुई अब
हेर छावा !
अब कुछ कर्ना बा कलेसे
अपने दमपर कुछ करके देखा ।
न कोइ सरकार न कोइ भग्वान यहाँ
यदि तुहिन भविष्यके चिन्ता बा कलेसे
छावा तै हजारौं हजार चुनौतिसे लरके देखा ।
एक गरिबीके दलदलसे निकारके देखा ।
तोर बाबाक अधुरा सपना पुरा करके देखा ।
छावा मै तुहिन ढुङगा जैसिन कठोर
ओ सहनशिल देखे चाहातु ।
जिहिन मै छिना ओ ठोकिया लैके
मारमारके परिवर्तनशिल करे चाहातु ।
यदि ठोकियाके हजारौं हजार चोट
सहना क्षमता बा कलेसे,
तुहिन एक सुन्दर मुर्तिके रूपमे
ज्वलनशिल देखे चाहातु ।
जहाँ मै जैसिन गरिबके घरफे एक मन्दिर बने ।
उ मन्दिरके चारुओंर दियाकेसँग खुसिंया सजे ।
रामकुमार ‘ऋदम्’
(बारबर्दिया–१, जोधीपुर, बर्दिया)
साझा बिसौनी ।